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देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल साहित्य, सिनेमा और समाज पर चर्चा के साथ हुआ प्रारंभ

देहरादून । देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल (डीडीएलएफ ) ने साहित्य, सिनेमा, समाज थीम के तहत दून इंटरनेशनल स्कूल, डालनवाला में अपने 6वें संस्करण की शुरुआत करी। यह तीन दिवसीय साहित्यिक महोत्सव साहित्य, कला और सिनेमा की आवाज़ों को एक साथ लाकर बौद्धिक संवाद को प्रेरित करता है। उद्घाटन समारोह में अभिनेत्री व कथक नृत्यांगना प्राची शाह पांड्या, ओलंपिक शूटर अभिनव बिंद्रा, डीआईएस के अध्यक्ष डीएस मान, डीआईएस के निदेशक एचएस मान, डीडीएलएफ के फाउंडर व प्रोडूसर समरांत विरमानी, फेस्टिवल डायरेक्टर सौम्या कुलश्रेष्ठ, और एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर जिया दीवान ने दीप प्रज्ज्वलन किया। उद्घाटन सत्र, ‘एक्सप्रेशंस ऑफ़ इंडिया – डांस, ड्रामा एंड कल्चरल हेरिटेज’, में प्राची शाह पांड्या ने सौम्या कुलश्रेष्ठ के साथ बातचीत में एक कथक कलाकार, अभिनेता और सांस्कृतिक उत्साही के रूप में अपनी यात्रा साझा की।
प्राची शाह पांड्या ने अपनी यात्रा और भारतीय विरासत पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा, “मैंने 3.5 साल की उम्र में हेमा मालिनी से प्रेरित होकर कथक सीखना शुरू किया और मेरे पिता ने सुनिश्चित किया कि मैं कभी भी कोई क्लास मिस न करूँ। 5 साल की उम्र में, उन्होंने दूरदर्शन पर परफॉर्म किया और नृत्य के प्रति अपने जुनून को जगाया। कॉलेज में रहते हुए, उन्होंने अप्रत्याशित रूप से अभिनय में प्रवेश किया और आगे चल कर ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ में पूजा के रूप में अपनी प्रतिष्ठित भूमिका निभाई, जो एक ऐसा मोड़ था जिसके बारे में वे कहती हैं कि “इसने मेरे जीवन को पूरी तरह से बदल दिया और 24 साल बाद भी यह शो मेरे लिए बहुत खास है।
सांस्कृतिक विरासत पर, पांड्या ने पोशाक के महत्व पर जोर दिया। विरासत को संरक्षित करने में कपड़ों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने सुझाव दिया, “सलवार कमीज जैसी हमारी परंपराओं को दर्शाने वाली स्कूल यूनिफॉर्म युवाओं को हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ सकती है।
इसके बाद, ओलंपिक शूटर अभिनव बिंद्रा ‘यंग, फिट और स्ट्रॉन्ग – द एलिमेंट्स ऑफ होलिस्टिक ग्रोथ’ नामक सत्र के लिए जीवन कौशल विशेषज्ञ ज्योतिका बेदी के साथ शामिल हुए। बिंद्रा ने संतुलन बनाए रखने में कृतज्ञता और माइंडफुलनेस की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “एक आदत जिसने मुझे जीवन भर मदद की है, वह है कृतज्ञता का अभ्यास करना। समग्र विकास के लिए शरीर, मन और आत्मा में संतुलन जरूरी है।” उन्होंने छात्रों से एक संपूर्ण जीवन के लिए मजबूत रिश्ते बनाए रखने का आग्रह किया।
इस उत्सव में ज्योतिका बेदी की पुस्तक ‘ट्रैप्ड इन ओवरथिंकिंग’ का विमोचन भी हुआ, जो लोगों को आत्म-संदेह को आत्म-प्रेम में बदलने में मदद करने के लिए व्यावहारिक उपकरण प्रदान करती है।
‘स्पार्क्स ऑफ क्रिएशन – हाउ इमेजिनेशन शेप्स माइंड्स’ में कवि व उपन्यासकार जेरी पिंटो ने छात्रों गौरी ए पाल, बेरेन बोहरा, नाईशा जमशेदजी और अमाया मारवाह के साथ एक दिलचस्प बातचीत की।
इस अवसर पर जेरी ने कहा, बचपन में, मुझे कभी भी स्कूल पसंद नहीं था और मैं भविष्य की चिंता करने के बजाय वर्तमान में जीना पसंद करता था। जबकि शिक्षक हमें 10 साल आगे की योजना बनाने के लिए कहते थे, मैं हमेशा सोचता था, ‘क्या होगा अगर मैं कल मर गया?’ इसलिए मैं सभी को वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करता हूं। उन्होंने एकभाषी संस्कृति के मुद्दे पर उदाहरण देते हुए कहा कि भारतीय सरकारी कार्यालय में धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलना या हिंदू वैदिक ग्रंथों में इसके महत्व के बावजूद संस्कृत में प्रवाह की कमी है। छात्रों को सलाह देते हुए उन्होंने कहा, “अगर आप जीवन में वास्तव में कुछ चाहते हैं, तो कोई भी आपको रोक नहीं सकता।
अश्विता जयकुमार और श्रुति बाली ने ‘ब्रशस्ट्रोक ऑफ़ एन एम्पायर – द मुगल्स इन आर्ट’ शीर्षक से एक सत्र का नेतृत्व किया, जिसमें भारतीय कला और संस्कृति में मुगलों के योगदान के बारे में बात की गई।
अनहद कश्यप ने ‘द पॉवर ऑफ़ स्टोरीज़ – ए यंग पर्सपेक्टिव’ में कहानी कहने में युवाओं की भूमिका के बारे में बात करी। ‘द मैज ऑफ़ माइथोलॉजी – अनलॉक्ड’ में, लेखक अक्षत गुप्ता ने सौम्या कुलश्रेष्ठ के साथ पौराणिक कथाओं पर अंतर्दृष्टि साझा की, जिसमें कालातीत कथाओं और आज उनकी प्रासंगिकता पर चर्चा की गई।
एक अन्य सत्र, ‘बोल्ड एंड बैलेंस्ड – एम्ब्रेसिंग योर होल सेल्फ’ में अंशुला कपूर, रूपाली हसीजा और संदीप बेदी ने इरा चौहान के साथ बातचीत की। सत्र ने उपस्थित लोगों को अपनी पहचान के कई पहलुओं को स्वीकार करने और अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया। दर्शकों को संबोधित करते हुए, अंशुला कपूर ने आज के ज़माने में बॉडी पॉज़िटिविटी को अपनाने के बारे में बात करी। उन्होंने बताया की कैसे पहले ज़माने में मोटापे को लेकर लोग दुखी होते थे कि दुनिया उनके बारे में क्या कहेगी। लेकिन आज के युग में युवाओं में अपने शरीर के आकार को लेकर बहुत आत्मविश्वास है।
अभिनेता विनीत कुमार और विश्वास पांड्या ने अक्षत गुप्ता के साथ बातचीत में ‘सिनेमा का चश्मा, समाज का आईना’ सत्र में समाज के प्रतिबिंब के रूप में सिनेमा की उभरती भूमिका पर चर्चा की। इस सत्र ने एक ऐसा दृष्टिकोण प्रदान किया जिसके माध्यम से उपस्थित दर्शकों को सिनेमाई कहानी और सामाजिक टिप्पणी के बीच गतिशील अंतःक्रिया के बारे में पता लगा। सत्र के दौरान विनीत कुमार ने कहा, मैंने जीवन में कभी किसी का किरदार नहीं निभाया। जब भी आप किसी का किरदार निभाने की कोशिश करते हैं, तो वह एक प्रतिकृति बन जाता है।
बाद में, त्रिनेत्रा ने नमिता दुबे के साथ ‘स्क्रब्स टू स्क्रिप्ट्स – द त्रिनेत्रा स्टोरी’ नामक सत्र में भाग लिया। त्रिनेत्रा ने अपने सत्र की शुरुआत दर्शकों से यह पूछकर की, “ट्रांसजेंडर व्यक्ति कौन है?” उन्होंने लिंग परिवर्तन सर्जरी से गुजरने की अपनी यात्रा और उनके सामने आने वाली सामाजिक चुनौतियों के बारे में बताया। त्रिनेत्रा ने शो ‘मेड इन हेवन’ में अपनी भूमिका और स्क्रीन पर ट्रांसजेंडर समुदाय का प्रतिनिधित्व करने पर अपने गर्व के बारे में भी चर्चा की। उन्होंने छात्रों को सोशल मीडिया की विषाक्तता से बचने की सलाह भी दी।
पहले दिन का समापन ‘चरागों का सफर – द लाइफ एंड पोएट्री ऑफ़ वसीम बरेलवी’ के साथ हुआ, जिसमें प्रसिद्ध कवि वसीम बरेलवी ने सिद्धार्थ शांडिल्य के साथ अपने काम और उर्दू कविता के स्थायी प्रभाव पर चर्चा की। जीवन, प्रेम और तन्यकता पर बरेलवी के विचार दर्शकों के साथ गहराई से जुड़े और एक स्थायी प्रभाव छोड़ते हुए फेस्टिवल के दूसरे दिन के लिए मंच तैयार किया।
इस अवसर पर बोलते हुए, डीडीएलएफ के संस्थापक और निर्माता समरांत विरमानी ने कहा, हमारा उद्देश्य हमेशा से देहरादून को बौद्धिक और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए एक मंच प्रदान करना रहा है। यह फेस्टिवल केवल एक बार होने वाले आयोजन से बढ़कर एक वार्षिक समारोह बनकर उभरा है। हम युवा पीढ़ी को प्रेरित करने और देहरादून के साहित्यिक व सांस्कृतिक परिदृश्य को मजबूत करने के लिए इस फेस्टिवल के निरंतर विकास को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
उत्सव के दूसरे दिन भी स्पीकर्स का एक अद्भुत लाइनअप देखा जाएगा, जिसमें पिया बेनेगल, लीना यादव, अनुपमा चोपड़ा, करण थापर और राजित कपूर जैसे उल्लेखनीय वक्ता शामिल हैं।

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